Friday, September 4, 2009

रंगे अदक


जिन्होनें क्रांतियां की वे अब क्रांतियों से डरने लगे हैं

क्रांतियह शब्द अब उन्हें नहीं भाता

इसे सुनते ही उनकी नींद उड़ जाती है
मैक्लोडगंज में लगातार हारता एक धर्मगुरु

अचानक जीतता दिखाई देने लगता है

उन्हें लगता है यह लाल वस्त्रधारी

कहीं हमारे लाल रंग को न हरा दे
बंदूक की नली से होकर निकली सत्ता

बंदूक की नली में तब्दील होकर रह जाती है

मनुष्य की स्वतंत्रता की बात करने वाली चेतना

दिखाई देती है स्वतंत्रता की चाहत रखने वाले

मनुष्य के विरूद्ध षड़यंत्र में जुटी

रंगे अदक तुम इतनी जल्दी

थ्यैन आन मन चैक को कैसे भूल गये

रंगे अदकः एक बौद्ध भिक्षु जिसे घोड़ो की रेस के दौरान दलाई लामा जिंदाबाद का नारा लगाने पर चीन ने आठ बरस का कारावास दे दिया ।

1 comment:

नीरज गोस्वामी said...

बेमिसाल रचना..
नीरज